मार दे खुद को तो जीने का मज़ा मिल जाएगा।
बेखुदी में डूबकर देखो खुदा मिल जाएगा ।
तृप्ति को क्यूँ ढूँढता है बोतलों में किस लिए ,
ग़र जियो मस्ती में तो यूं ही नशा मिल जाएगा।
मैं नहीं परवाना जो जाकर शमां पर जान दे ,
तूं न मिल पाया तो कोई दूसरा मिल जाएगा ।
बेइरादा चलने से कोई पहुँचता है नहीं ,
पहले मंज़िल तो चुनो फिर रास्ता मिल जाएगा।
क्यों परीशाँ हो रहा है तूं बहारों के लिए ,
फिर खिज़ां के बाद ही मंज़र हरा मिल जाएगा।
इस शहर में दोस्तो स्नेहिल बड़ा मशहूर है ,
चाहे जिससे पूंछ्लो उसका पता मिल जाएगा ।
-विनय ओझा स्नेहिल
Friday, June 8, 2007
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