Sunday, July 24, 2011

दोहा

लोकतंत्र की गाय को दुह कर कर दी ठांठ .
जनसेवी माखन भखें जन को दुर्लभ छांछ.

Saturday, January 22, 2011

सूरज हो मुकाबिल तो शरारा नहीं टिकता ।
दिन में कोई आकाश में तारा नहीं दिखता ॥

मुश्किल में बदल जाते हैं हर नाते और रिश्ते-
रोने को भी काँधे का सहारा नहीं दिखता ।

ईमान की कीमत न चुका पाओगे मेरे-
वरना सर-ए-बाज़ार यहाँ क्या नहीं बिकता ।

सरकारें बदल बदल के यह देख लिया है-
हालात बदल पाने का चारा नहीं दिखता ।

संसद पे जमा रक्खा है बगुलों ने यूँ कब्ज़ा-
हंसो का सियासत मे गुज़ारा नहीं दिखता ।