Tuesday, September 25, 2007

दृष्टि-दोष

इस दुनिया में -
न कोई अमीर है ,

न कोई गरीब है,
न कोई बड़ा है ,
न कोई छोटा है,
न कोई सुखी है ,
न कोई दुःखी है ,
हर कोई इस दुनिया में -
अमीर है ,
गरीब है ,
बड़ा है ,
छोटा है ,
सुखी है,
दुःखी है ,
बीरबल की खींची गयी-
लकीर की तरह ,
एक दुसरे की तुलना में,
एक दुसरे की तुलना में ।

-विनय ओझा स्नेहिल

Monday, September 24, 2007

नहीं मिलती मंज़िल

नहीं मिलती मंज़िल
बैठ कर सपनों के
उड़न-खटोलों पर ।
नहीं मिलती मंज़िल -
बैठ कर प्रतीक्षा करने से
सघन कुञ्ज की शीतल छाया में ,
बल्कि इसके लिए
चलना पड़ता है निरंतर
कांटो भरे पथ पर
पलकों पर लिए
आशा के दीप
उपेक्षा कर
पैर के छालों को ॥

-विनय ओझा स्नेहिल

Thursday, September 20, 2007

कता

हम मुश्किलों से लड़ कर मुकद्दर बनाएँगे।
गिरती हैं जहाँ बिजलियाँ वहाँ घर बनाएँगे।।

पत्थर हमारी राह के बदलेंगे रेत में -
हम पाँव से इतनी उन्हें ठोकर लगाएँगे॥

-विनय ओझा स्नेहिल

Friday, September 14, 2007

कता

ख़यालों में तूं आ गया सोते सोते ।
तो दिल में सुकूँ आ गया रोते रोते।

मेरे जख्म ए दिल की नज़ाकत न पूंछो-
निगाहों से खूं आ गया रोते रोते॥

-विनय ओझा स्नेहिल