ठोकरें राहों में मेरी कम नहीं।
भी देखो आँख मेरी नम नहीं।
जख्म वो क्या जख्म जिसका हो इलाज-
जख्म वो जिसका कोई मरहम नहीं।
भाप बन उड़ जाऊंगा तू ये न सोच-
मैं तो शोला हूँ कोई शबनम नहीं।
गम से क्यों कर है परीशाँ इस क़दर -
कौन सा दिल है कि जिसमें ग़म नहीं।
चंद लम्हों में सँवर जाए जो दुनिया -
ये तेरी जुल्फों का पेंचो-ख़म नहीं।
दाद के काबिल है स्नेहिल की गज़ल-
कौन सा मिसरा है जिसमें दम नहीं।
-विनय ओझा ' स्नेहिल'
Thursday, November 22, 2007
Friday, November 2, 2007
जिंदगी
ज़िन्दगी क्यों उदास लगती है ।
मौत जब आस- पास लगती है ॥
मुझसे वह बिन मिले नहीं जाता -
कुछ तो दिल में खटास लगती है॥
कितने अर्सों से देखता हूँ उसे -
फिर भी हर लम्हा ख़ास लगती है॥
जितनी कोशिश करो बुझाने की -
उतनी ही ज्यादा प्यास लगती है॥
मर के भी आंख थी खुली उसकी -
उनको मेरी तलाश लगती है ॥
- विनय ओझा "स्नेहिल "
मौत जब आस- पास लगती है ॥
मुझसे वह बिन मिले नहीं जाता -
कुछ तो दिल में खटास लगती है॥
कितने अर्सों से देखता हूँ उसे -
फिर भी हर लम्हा ख़ास लगती है॥
जितनी कोशिश करो बुझाने की -
उतनी ही ज्यादा प्यास लगती है॥
मर के भी आंख थी खुली उसकी -
उनको मेरी तलाश लगती है ॥
- विनय ओझा "स्नेहिल "
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