Tuesday, June 19, 2007

धन्यवाद तेरा कंप्यूटर

दुनिया के कोने कोने में-
चाहे शख्स कहीं बैठा हो ,
संवादों से जुड़ा हुआ है इन्टरनेट पर;
धन्यवाद तेरा कंप्यूटर॥

जैसे ग्रंथों में रक्खा है -
ज्ञान का एक अनमोल खजाना ,
उसी तरह इन्टरनेट रखता -
ज्ञान भरे हर लेख यहाँ पर,
गीता वेद पुराण रामायण-
बाइबिल और कुरान सभी हैं,
कोई ग्रंथ खोज लो इस पर-
ग्रंथों की तो कमी नहीं है।

महिमा गुरू से कम न तेरी
यह विशवास तुम्हारे ऊपर ।।

कोई प्रश्न उभरता मन में-
या हो कोई बात जाननी,
कोई कठिनाई जीवन में-
इसके पास तो बैठो छण भर,
गागर में भर डाला कैसे?
इतने गहरे ज्ञान का सागर,

इतना ज्ञान मुफ़्त में मिलता ,
तेरे चंद बटन के ऊपर ॥
-विनय ओझा स्नेहिल

Tuesday, June 12, 2007

गीत

अपने हाथों से जब होगा -
अपनी स्थिति में परिवर्तन ,
फिर निराश क्यों होता है मन ।

हमने ही तारों की सारी क्रिया बनाई ,
हमने ही नापी जब सागर की गहराई ;
हमने ही जब तोड़े अपनी-
हर इक सीमाओं के बन्धन ।
फिर निराश ......................

मेरी पैनी नज़रों ने ही खोज निकाले,
खनिज अंधेरी घाटी से भी ;
हमने अपने मन की गंगा सदा बहाई,
चीर के चट्टानों की छाती से भी ;

कदम बढ़ाओ लक्ष्य है आतुर -
करने को तेरा आलिंगन ।
फिर निराश...................

मत सहलाओ पैर के छालों को रह - रह कर ,
ये तो सचे राही के पैरों के जेवर ,
मत घबराओ तूफानों से या बिजली से-
नहीं ये शाश्वत क्षण भर के मौसम के तेवर ;

धीरे धीरे सब बाधाएँ थक जाएँगी -
तब राहों के अंगारे भी बन जाएँगे शीतल चंदन ।
फिर निराश .........................
- विनय ओझा स्नेहिल

मन पर अधिकार तुम्हारा है

तन तो मेरा है लेकिन -
मन पर अधिकार तुम्हारा है।

मेरी साँसों में सुरभित ,
तेरी चाहत का चंदन है ;
कहने को तो ह्रदय हमारा ;
पर इसमें तेरी धड़कन है।

तेरी आंखों से जो छलके -
है वो प्यार हमारा है ।।

मेरे शब्द गीत के रखते
तेरी पीड़ा के स्पंदन ;
कलिकाए ही अनुभव करतीं
भ्रमरों के वो कातर क्रन्दन;

मैं वो मुरली की धुन हूँ -
जिसमें गुंजार तुम्हारा है॥

चाह बहुत है मिलने की -
अवकाश नहीं मिलता है ;
दोष नियति का भी कुछ है -
जो साथ नहीं नहीं मिलता है ;

सोम से शनि तक मेरा है -
लेकिन इतवार तुम्हारा है॥
-विनय ओझा स्नेहिल

Monday, June 11, 2007

अशआर

मुस्कराहट पाल कर होंठों पे देखो दोस्तो-
मुस्करा देगा यकीनन गम भी तुमको देखकर ।

थाम लेगा एकदिन दामन तुम्हार आसमाँ -
धीरे धीरे रोज ग़र उंचा अगर उठते रहे ।

यह और है कि हसीनों के मुँह नहीं लगते-
वरना रखते हैं जिगर हम भी अपने सीने में ।

पाँव में ज़ोर है तो मिल के रहेगी मंज़िल -
रोक ले पाँव जो ऐसा कोई पत्थर ही नहीं ।
-विनय ओझा स्नेहिल

कविता

दिल के सुराग जिनकी निगाहों में मिले थे ।
कल रात को वो ही मुझे ख्वाबों में मिले थे।

इतनी सी बात थी मगर रुसवा हुए हम लोग ,
ख़त मेरे लिखे उनकी किताबों में मिले थे ।।
-विनय स्नेहिल

Friday, June 8, 2007

सिवा अपने इस जगत का ...

सिवा अपने इस जगत का आचरण मत देखिए.
काम अपना है तो औरों की शरण मत देखिए.
होती हैं हर पुस्तक में ज्ञान की बातें भरी,
खोलकर पढ़िए भी इसको आवरण मत देखिए.
कंटकों के बीच खिल सकता है कोई फूल भी,
समझने में व्यक्ति को वातावरण मत देखिए.
लक्ष्य पाना है तो सुख की कल्पनाएं छोड़ दो,
लक्ष्य ही बस देखिए आहत चरण मत देखिए.
यदि समझना चाहते हो जगत के ध्रुवसत्य को
आत्मा को देखिए जीवन मरण मत देखिए.
विनय स्नेहिल




ग़ज़ल

मार दे खुद को तो जीने का मज़ा मिल जाएगा।
बेखुदी में डूबकर देखो खुदा मिल जाएगा ।
तृप्ति को क्यूँ ढूँढता है बोतलों में किस लिए ,
ग़र जियो मस्ती में तो यूं ही नशा मिल जाएगा।
मैं नहीं परवाना जो जाकर शमां पर जान दे ,
तूं न मिल पाया तो कोई दूसरा मिल जाएगा ।
बेइरादा चलने से कोई पहुँचता है नहीं ,
पहले मंज़िल तो चुनो फिर रास्ता मिल जाएगा।
क्यों परीशाँ हो रहा है तूं बहारों के लिए ,
फिर खिज़ां के बाद ही मंज़र हरा मिल जाएगा।
इस शहर में दोस्तो स्नेहिल बड़ा मशहूर है ,
चाहे जिससे पूंछ्लो उसका पता मिल जाएगा ।
-विनय ओझा स्नेहिल

दर्दे गम

दर्दे गम सीने में अपने दबा तो सकते हैं ।
सुकूँ मिले ना मिले मुस्करा तो सकते हैं ।
यूं ज़रूरी नहीं हर ख्वाब का पूरा होना ,
कम से कम दिल को पल भर भुला तो सकते हैं ।
खुदकशी करनी है तो बाद में भी कर लेंगे ,
अपनी किस्मत को फिर से आजमा तो सकते हैं।
साथ में हम हैं तो फिर दाम की परवाह न कर,
हम नहीं पीते हैं फिर भी पिला तो सकते हैं।
जितना ज्यादा हो गम का बोझ मेरे सर पे रख ,
जितना
भारी हो मगर हम उठा तो सकते हैं।

विनय स्नेहिल

ग़ज़ल

हाले दिल सबसे छिपाना नहीं अच्छा होता।
फिर भी हर इक से बताना नहीं अच्छा होता।
आज का जख्म कल नासूर भी बन सकता है ,
दर्द कोई हो दबाना नहीं अच्छा होता।
दिल की चोरी बस एक बार ही वाज़िब होती ,
इससे ज्यादा भी चुराना नहीं अच्छा होता।
तेरे ऊपर जो भरोसा है न उठ जाए कहीं ,
अपने लोगों से बहाना नहीं अच्छा होता ।
थोड़ी थोड़ी ही पियो लुत्फे इजाफा होगा ,
प्यास अचानक भी बुझाना नहीं अच्छा होता।
विनय स्नेहिल

Thursday, June 7, 2007

सोंचो क्या ?

सोंचो क्या यह दुनिया में , हैरत की बात नहीं ?
कितने सीने में दिल हैं ,लेकिन जज्बात नहीं।
रहे कहॉ भगवान् न मंदिर मस्जिद में जाये तो -
काशी या काबा जैसा कोई दिल पाक़ नहीं ॥
-विनय ओझा स्नेहिल
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ग़ज़ल
यह ज़माना इस क़दर दुश्मन हमारा हो गया।
ख्वाब जो देखा था वो दिनका सितारा हो गया ॥
मेरे सीने में पला फिर भी ना मेरा हो सका -
इक नज़र देखा नहीं कि दिल तुम्हारा हो गया।
चाहतें कितनों की फूलों की अधूरी ही रहीं -
उम्र भर कांटों पे चलकर ही गुज़ारा हो गया ।
एक शै को देख कर सबने अलग बातें कहीँ -
नज़रिया जैसा रहा वैसा नज़ारा हो गया ।
वाकफियत तक नहीं महदूद मेरी दोस्ती -
मुस्करा कर जो मिला वो ही हमारा हो गया ।

-विनय ओझा स्नेहिल
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भूल जाऊं मुझे सदा मत दे ।
आतिश- ए इश्क को हवा मत दे ॥
हमने किश्तों में खुदकशी की है -
और जीने की बद्दुआ मत दे ।
मैं अकेला दिया हूँ बस्ती का -
कोई जालिम हवा बुझा मत दे।
एक यही हमसफ़र हमारा है -
दर्देदिल कि हमें दवा मत दे ।
वो कतिलों के साथ रहता है -
अपने घर का उसे पता मत दे ।
घुटके दम ही ना तोड़ दे स्नेहिल
उसको इतनी कड़ी सज़ा मतदे।

-विनय ओझा स्नेहिल