जननायक बैठ रहे हैं भय से ,
खलनायक हैं खड़े हुए।
खलनायक हैं खड़े हुए।।
राम, कृष्ण ,शिवाजी, राणा प्रताप ,
छूट चुके आज बहुत पीछे हैं।
शकुनी,जैचंद, कंस और मीर्जाफर ही ,
मंच पर पल्थी मारे बैठे हैं ।
विदुर भीष्म के मुख पर -
ताले अब हैं जड़े हुए॥
चोर उचक्कों के हम पर अब पहरे हैं,
जिन्हे चुना जनप्रतिनिधि गूंगे और बहरे हैं,
नाम हरिश्चंद पर -
अपराध जगत से जुडे हुए॥
झूठे और सच की पहचान आज मुश्किल है,
रखना सुरक्षित ईमान यहाँ मुश्किल है,
चाँदी के ऊपर अब -
सोने के रंग चढ़े हुए॥
-विनय ओझा स्नेहिल
Friday, July 20, 2007
Thursday, July 19, 2007
चतुष्पदी
हर घड़ी एक हादसे का डर लिए है देखिए।
भीड़ अपने हाथ में पत्थर लिए है देखिए।
शाम को जो घर से अपने निकला था बाज़ार को
कोई उसका धड़ लिए कोई सर लिए है देखिए॥
विनय ओझा स्नेहिल
भीड़ अपने हाथ में पत्थर लिए है देखिए।
शाम को जो घर से अपने निकला था बाज़ार को
कोई उसका धड़ लिए कोई सर लिए है देखिए॥
विनय ओझा स्नेहिल
Wednesday, July 18, 2007
मुक्तक
बेहतर है छोड़ दो हमे तुम अपने हाल पर।
पैसे तो न खाओ मेरे हक़ के सवाल पर॥
जो हाथ चुने हमने खुद अपनी मदद को -
बन कर तमाचा बरसते हैं मेरे गाल पर ॥
खुल कर जवाब दीजिए अब मेरी बात का -
नज़रें चुराइए ना हमारे सवाल पर ॥
-विनय ओझा स्नेहिल
पैसे तो न खाओ मेरे हक़ के सवाल पर॥
जो हाथ चुने हमने खुद अपनी मदद को -
बन कर तमाचा बरसते हैं मेरे गाल पर ॥
खुल कर जवाब दीजिए अब मेरी बात का -
नज़रें चुराइए ना हमारे सवाल पर ॥
-विनय ओझा स्नेहिल
Wednesday, July 11, 2007
देख लो अब भैया ।
सच की खिंचती खाल देख लो अब भैया।
झूठ है मालामाल देख लो अब भैया॥
आगजनी ही जिसने सीखा जीवन में ,
उनके हाथ मशाल देख लो अब भैया॥
चोरी लूट तश्करी जिनका पेशा है,
वाही हैं द्वारपाल देख लो अब भैया॥
माली ही जब रात में पेड़ों पर मिलता है ,
किसे करें रखवाल देख लो अब भैया॥
झूठ है मालामाल देख लो अब भैया॥
आगजनी ही जिसने सीखा जीवन में ,
उनके हाथ मशाल देख लो अब भैया॥
चोरी लूट तश्करी जिनका पेशा है,
वाही हैं द्वारपाल देख लो अब भैया॥
माली ही जब रात में पेड़ों पर मिलता है ,
किसे करें रखवाल देख लो अब भैया॥
बंदूकों से छीन के ही जब खाना हो-
भांजे कौन कुदाल देख लो अब भैया॥
-विनय ओझा स्नेहिल
Monday, July 9, 2007
रात की क़ैद मे हैं उजाले
रात की क़ैद में हैं उजाले ।
बैठे हम हाथ पर हाथ डाले ॥
लाश पहचान में आ सकी ना -
चील कौओं ने यूँ नोच डाले।
राज फैला है तब तब असत् का -
सत्य ने जब भी हथियार डाले ।
राह में आ गया जो भी पत्थर -
पाँव से हम उसे तोड़ डाले ।
रोएगी मौत पर मेरे दुनिया -
देखकर के मुझे मुस्करा ले ।
सब्र का बाँध जब टूटता है -
दिल संभलता नहीं है संभाले ।
गर्म बाज़ार हैं कुर्सियों के -
दाम इतने सदन ने उछाले।
वह अदालत में सच कैसे बोले-
होंठ पर खौफ के हैं जो ताले ।
- विनय ओझा स्नेहिल
बैठे हम हाथ पर हाथ डाले ॥
लाश पहचान में आ सकी ना -
चील कौओं ने यूँ नोच डाले।
राज फैला है तब तब असत् का -
सत्य ने जब भी हथियार डाले ।
राह में आ गया जो भी पत्थर -
पाँव से हम उसे तोड़ डाले ।
रोएगी मौत पर मेरे दुनिया -
देखकर के मुझे मुस्करा ले ।
सब्र का बाँध जब टूटता है -
दिल संभलता नहीं है संभाले ।
गर्म बाज़ार हैं कुर्सियों के -
दाम इतने सदन ने उछाले।
वह अदालत में सच कैसे बोले-
होंठ पर खौफ के हैं जो ताले ।
- विनय ओझा स्नेहिल
Thursday, July 5, 2007
मेरी किश्ती नहीं डरती भंवर से
मेरी किश्ती नहीं डरती भंवर से।
सुलह तूफ़ान की न हो लहर से ॥
कभी दुनिया में उठ नहीं सकते वो,
जो गिर जाते हैं अपनी ही नज़र से ।
तजुर्बों में मैं पुख्ता हो गया हूँ ,
हमारी अक्ल न नापो उमर से।
उसूलों पर हमारे चोट मारो,
नहीं मैं मरने वाला हूँ ज़हर से।
किसी रहमत का साया था न हम पर ,
हमे जो भी मिला अपने हुनर से ।
इसी उम्मीद पे बैठे हैं अब तक ,
अभी गुजरेंगे वो शायद इधर से ।
ठहर जाने पे लकवा मार देगा ,
मेरे पावों में ताकत है सफ़र से ।
-विनय ओझा स्नेहिल
सुलह तूफ़ान की न हो लहर से ॥
कभी दुनिया में उठ नहीं सकते वो,
जो गिर जाते हैं अपनी ही नज़र से ।
तजुर्बों में मैं पुख्ता हो गया हूँ ,
हमारी अक्ल न नापो उमर से।
उसूलों पर हमारे चोट मारो,
नहीं मैं मरने वाला हूँ ज़हर से।
किसी रहमत का साया था न हम पर ,
हमे जो भी मिला अपने हुनर से ।
इसी उम्मीद पे बैठे हैं अब तक ,
अभी गुजरेंगे वो शायद इधर से ।
ठहर जाने पे लकवा मार देगा ,
मेरे पावों में ताकत है सफ़र से ।
-विनय ओझा स्नेहिल
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