Monday, June 11, 2007

कविता

दिल के सुराग जिनकी निगाहों में मिले थे ।
कल रात को वो ही मुझे ख्वाबों में मिले थे।

इतनी सी बात थी मगर रुसवा हुए हम लोग ,
ख़त मेरे लिखे उनकी किताबों में मिले थे ।।
-विनय स्नेहिल

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