Thursday, July 5, 2007

मेरी किश्ती नहीं डरती भंवर से

मेरी किश्ती नहीं डरती भंवर से।
सुलह तूफ़ान की न हो लहर से ॥

कभी दुनिया में उठ नहीं सकते वो,
जो गिर जाते हैं अपनी ही नज़र से ।

तजुर्बों में मैं पुख्ता हो गया हूँ ,
हमारी अक्ल न नापो उमर से।

उसूलों पर हमारे चोट मारो,
नहीं मैं मरने वाला हूँ ज़हर से।

किसी रहमत का साया था न हम पर ,
हमे जो भी मिला अपने हुनर से ।

इसी उम्मीद पे बैठे हैं अब तक ,
अभी गुजरेंगे वो शायद इधर से ।

ठहर जाने पे लकवा मार देगा ,
मेरे पावों में ताकत है सफ़र से ।

-विनय ओझा स्नेहिल

3 comments:

पारुल "पुखराज" said...

ठहर जाने पे लकवा मार देगा ,
मेरे पावों में ताकत है सफ़र से ।

-वाह …वाह्…और वाह

Unknown said...

सर, जबरदस्त।

Unknown said...

सर, जबरदस्त।