बेहतर है छोड़ दो हमे तुम अपने हाल पर।
पैसे तो न खाओ मेरे हक़ के सवाल पर॥
जो हाथ चुने हमने खुद अपनी मदद को -
बन कर तमाचा बरसते हैं मेरे गाल पर ॥
खुल कर जवाब दीजिए अब मेरी बात का -
नज़रें चुराइए ना हमारे सवाल पर ॥
-विनय ओझा स्नेहिल
Wednesday, July 18, 2007
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2 comments:
क्या जनाब अब आपको जवाब भी चाहिए. एक शेर अर्ज है :
धरती से आसमान तक जिसका हो निशान
अजी जवाब तो न मंगिए ऐसे सवाल पर.
जो हाथ चुने हमने खुद अपनी मदद को -
बन कर तमाचा बरसते हैं मेरे गाल पर ॥
---यह तमाचा तो आपने मारा है नेताओं को-अब कौन जबाब देगा, जनाब आपके सवाल का?
-बढ़िया है.
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