Wednesday, July 11, 2007

देख लो अब भैया ।

सच की खिंचती खाल देख लो अब भैया।
झूठ है मालामाल देख लो अब भैया॥

आगजनी ही जिसने सीखा जीवन में ,
उनके हाथ मशाल देख लो अब भैया॥

चोरी लूट तश्करी जिनका पेशा है,
वाही हैं द्वारपाल देख लो अब भैया॥

माली ही जब रात में पेड़ों पर मिलता है ,
किसे करें रखवाल देख लो अब भैया॥

बंदूकों से छीन के ही जब खाना हो-
भांजे कौन कुदाल देख लो अब भैया॥

-विनय ओझा स्नेहिल

1 comment:

Udan Tashtari said...

मुफ्त में पढ़ कर भी सब भग जाते है-
टिप्पणी न दें कंगाल देख लो अब भैया॥


:)
--बढ़िया है, लिखते रहें लगातार. लोग पढ़ रहे हैं, बस टिपियाते नहीं.