Monday, September 14, 2009

जागो-जागो बचालो वतन साथियों

जागो जागो बचालो वतन साथियों,
लुटता माली के हाथों चमन सथियों ।

जिनके पुरखों ने सींचा लहू से चमन,
जिनके हक के लिए बाँधा सिर पर कफन;
उनकी संतानें यूँ धन की प्यासी हुईं-
कर रहीं हैं गबन पर गबन सथियों॥

त्याग बलिदान अब तो किताबों में है,
हर कोई मस्त अपने हिसाबों में है ;
हम न सुधरेंगे ये व्रत है हमने लिया-
पर सुधारें सभी आचरन साथियों ॥

कृष्ण फिर से धरा पर उतर आइये,
हाथ अर्जुन के गांडीव पकड़ाइये;
सारे जनसेवी बनकर दुशाषन यहाँ-
खींचते भारत माँ का बसन साथियों ॥


- विनय कुमार ओझा ‘स्नेहिल’

3 comments:

Mishra Pankaj said...

बहूत खूब ओझा जी

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बहुत बढिया पिरोया आपने !

दिगम्बर नासवा said...

कृष्ण फिर से धरा पर उतर आइये,
हाथ अर्जुन के गांडीव पकड़ाइये;
सारे जनसेवी बनकर दुशाषन यहाँ-
खींचते भारत माँ का बसन साथियो....

AB TUMHAARE HAWAALE VATAN SAATHIYON ... BAHOOT HI LAJAWAAB LIKHA HAI ... KAMAAL KA ..