Monday, December 29, 2008

सन्जीवनी क्या है ?

इस दुनिया में जितना आलस्य और निराशा ने नुकसान पहुंचाया है उतना असफलताओं ने नहीं। मनुष्य के जीवन में जब सिलसिलेवार असफलता आती है तो उसका आत्मविश्वास टूट जाता है और वह उन्हें ही अपनी नियति मान कर बैठ जाता है । जब मनुष्य के जीवन में निराशा की घनघोर बदली छाती है तो उसे आशा की किरण भी नहीं दिखाई देती और तब उसकी सारी सृजनात्मक शक्ति का धीरे धीरे ह्रास होने लगता है। जैसे पिंजरे में सालों साल क़ैद रहे पंछी को खुले आसमान में उड़ना भूल सा जाता है और उसे पिंजरे से बाहर भी निकालने पर वह खुले आसमान में उड़ान भरने की अपेक्षा पिंजरे में वापस आ जाता है। क्योंकि वही उसकी नियति बन चुकी होती है। ऐसे में वह ब्यक्ति जिसके भीतर अपार सृजनात्मक कौशल और असीम संभावनाएं उसी तरह छिपी रहती हैं जैसे कि एक छोटे से बीज में एक विशाल वट वृक्ष सुप्तावस्था में छिपा रहता है निराशा के चंगुल में फंसकर आलसी भाग्यवादी होते हुए जीवन के मोर्चे पर कई ऐसे युद्ध बिना लड़े ही हार जाता है या समझौता कर लेता है जिसे जीतने की ताक़त वह अपनी भुजाओं में रखता है। इसी संदर्भ में कहा गया है कि मन के हारे हार है मन के जीते जीत । मन है क्या ?विचारों का एक समुच्चय । यदि विचारों के समुच्चय का रुख़ सकारात्मक है, जैसे कि मैं यह कार्य करने की क्षमता रखता हूँ तो मनुष्य अपनी मंज़िल तक पहुँचता है और यदि वह नकारात्मक है या निराशाजनक है जैसे कि मैं यह कार्य नहीं कर सकता तो वह चले बग़ैर ही बैठ जाता है और पहुँचने की सारी संभावनाओं का मार्ग बंद कर देता है । ऎसी स्थिति में कह सकते हैं कि जिस ब्यक्ति की सारी ऊर्जा का अक्षय स्रोत निराशा ने बंद कर दिया है उसके भीतर वह सृजनात्मक ऊर्जा नहीं रही जिसे भगवान् ने सहज रुप से उसके भीतर भरा है तो निश्चित ही कह सकते है कि वह व्यक्ति मर चुका है। ऐसे में उसको पुनर्जीवित करने सकारात्मक विचारों की उर्जा से उसको उसी तरह पुनारावेशित या रिचार्ज करने की आवश्यकता होती है जैसे किसी बैट्री की ऊर्जा निश्चित समय के उपरांत चुक जाती है। तब यह कार्य यानी मृत को पुनर्जीवित करने का कार्य संजीवनी/ काव्यामृत /आबे हयात करती है। यदि ऐसे मृत ब्यक्ति को जिसकी समस्त सृजनात्मक शक्ति चुक गयी है आशापरक बिचारों की संजीवनी पिलाई जाए तो उसके भीतर अक्षय ऊर्जा का संचार होने लग जता है और वह व्यक्ति बहुआयामी और असीम संभावनाओं को अपने जीवन में साकार करने लग जाता है। ऐसे में हमें संजीवनी बूटी किसी दवा की दुकान या हॉस्पिटल से नहीं बल्कि कवि या साहित्यकार के मस्तिष्क से वैचारिक मंथन के उपरांत साहित्य या काव्यामृत के रूप में प्राप्त होती है। हम यह दावे के साथ कह सकते है कि ऐसे मनुष्य के लिए साहित्य एक संजीवनी का कार्य करता है जिससे उसके भीतर अपार सृजनात्मक शक्ति का संचार होने लग जाता है और तब वह मुर्दे जैसी जड़ता को तोड़कर अपने लक्ष्य की ओर दौड़ पड़ता है । जो व्यक्ति साहित्य की संजीवनी पीता है उसकी ऊर्जा प्रतिकूल परिस्थितियां सोख नही पातीं और वह जीवन मार्ग में थक कर बैठता नहीं बल्कि फिर धुल झाड़कर लक्ष्य की ओर चल देता है। वह प्रतिकूल हवा के झोंकों में दीपक की तरह बुझ नहीं जाता बल्कि आँधियों से लड़ते-लड़ते भभक-भभक कर मशाल बन जाता है, और तब मुश्किलों की आंधियां थक जाती हैं या अपना रास्ता बदल देती हैं। इसी प्रेरणा से हमने अपने ब्लोग का नाम संजीवनी रखा है। हमारे हाथ के प्याले उसी को आतुर होकर खोज रहे है और पैर बग़ैर थके उसी तरफ बढ़ते जा रहे हैं जिसे संजीवनी की जरूरत है । इसीलिए मैंने सबसे पहली चतुष्पदी इसे पोस्ट किया है जो हमारे संकल्पों को रेखांकित करता है-हम मुश्किलों से लड़ कर मुकद्दर बनाएँगे,गिरती हैं जहाँ बिजलियाँ वहाँ घर बनाएंगे। पत्थर हमारी राह के बदलेंगे रेत में हम पाँव से इतनी उन्हें ठोकर लगाएँगे॥ विनय ओझा स्नेहिल

2 comments:

रंजना said...

वाह ! कितनी सुंदर बात कही आपने ! आपका आभार.
ईश्वर करें लोग इन बातों को अपने जीवन में उतारें और अपना जीवन सुखद बनायें.

Unknown said...

very true...u have said rightly..if all r imbibe it as u said life will become so beautiful.

By the way, i was searching for Hindi typing tool and found "quillpad". Do u use the same to type in Hindi in your blog....?