उन्हें चेतना का संवाहक कैसे मानूं?
खल नायक को जननायक कैसे मानूं?
जो चप्पल तक बरसाते हैं सदनों में,
जन गण मन का अधिनायक कैसे मानूं?
जिन्हें बनाते डरता हूँ अभिभावक बच्चों का ,
उन्हें देश का अभिभावक कैसे मानूं?
जिन्हें बनाना नहीं चाहता द्वारपाल अपने घर का,
उन्हें राज्यपाल पद लायक कैसे मानूं?
विनय स्नेहिल
Monday, May 28, 2007
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1 comment:
achhi gazal kahi hai. tevar aage banaae rakhein.
isht dev sankrityaayan
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