Monday, May 7, 2007

चतुष्पदियाँ

हम मुश्किलों से लड़ कर मुकद्दर बनाएँगे.
गिरती हैं जहाँ बिजलियाँ वहाँ घर बनाएँगे.
पत्थर हमारी राह के बदलेंगे रेत में -

हम पाँव से इतनी उन्हें ठोकर लगाएँगे..
-विनय ओझा स्नेहिल

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उम्मीद की किरण लिए अंधियारे में भी चल.
बिस्तर पे लेट कर ना यूँ करवटें बदल.

सूरज से रौशनी की भीख चांद सा न मांग,
जुगनू की तरह जगमगा दिए की तरह जल ..
-विनय ओझा स्नेहिल

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