Tuesday, October 15, 2019


जिस काम में मन लगता है, वह आसान सा लगता है।
वर्ना छोटा काम भी, अनुसंधान सा लगता है ॥
सुख की बूंदे पडी जो मन पर, गर्म तवे सी भाप बनी-
दुख मे डूबे हृदय को सुख भी, मरु उद्यान सा लगता है ॥
मजा आये जब कठिन समीकरण, मे आ जाये इति सिद्धम –
वर्ना हल्का गुणा-भाग भी भिन्न समान सा लगता है ॥
रट्टा मार गया बालक का, रूप एक ही घंटे मे –
विनय कुमार मुझको तो, पणिनि की संतान सा लगता है ॥
तंत्र साधना करने वाले, शम्शानो मे फिरते हैं –
अंधियारे मे बाग हमे तो कब्रिस्तान सा लगता है ॥
कुशल-छेम पूंछा, खा- पीकर, अपने घर को निकल लिया-      
तेरे शहर में दोस्त भी 'स्नेहिल', एक मेहमान सा लगता है ॥

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