Friday, October 10, 2008

दोहे

शेख जाहिरा देखती कठिन न्याय का खेल।

सच पर जोखिम जान की झूठ कहे तो जेल॥

खल नायक सब हैं खड़े राजनीति में आज।

जननायक किसको चुनें दुविधा भरा समाज।।

क्या हिंदू क्या मुसलमाँ ली दंगो ने जान।

गिद्ध कहे हैं स्वाद में दोनो मॉस समान॥

जिसको चक्की पीसनी थी जाकरके जेल।

आज वही हैं खींचते लोकतंत्र की रेल॥

बाल सुलभ निद्रा और बालसुलभ मुस्कान।

बच्चों के अतिरिक्त दे संतों को भगवान॥

एक गधा घुड़दौड़ में बाजी ले गया मार

बेचारा घोड़ा हुआ आरक्षण का शिकार॥


लोकतंत्र की गाय को दुह कर कर दी ठाँठ ।
जनसेवी माखन भखें, जन को दुर्लभ छाँछ॥
- विनय ओझा स्नेहिल

3 comments:

श्रीकांत पाराशर said...

Bahut badhiya dohe. achhe lage.

महेंद्र मिश्र.... said...

एक गधा घुड़दौड़ में बाजी ले गया मार

बेचारा घोड़ा हुआ आरक्षण का शिकार॥

bahut hi sateek umda rachana.bhai likhate rahiye.

Smart Indian said...

सत्य वचन, ओझा जी!