लोकतंत्र में अपराधी को माल्यार्पण फिर क्या कहना ?
जेल से आकर जनसेवा का शपथग्रहण फिर क्या कहना ?
जिनके हाथ मे ख़ून के धब्बे चौरासी के दंगो के-
बापू की प्रतिमा का उनसे अनावरण फिर क्या कहना ?
एक विधेयक लाभों के पद पर बैठाने की खातिर।
लाभरहित सूची मे उसका नामकरण फिर क्या कहना ?
कितने फांसी पर झूले थे जिस आज़ादी की खातिर -
सिर्फ दाबती खादी ही के आज चरण फिर क्या कहना ?
बार बार मैं दिखलाता हूँ अपने हाथों मे लेकर -
नहीं देखते अपना चेहरा ले दर्पण फिर क्या कहना ?
-विनय ओझा स्नेहिल
Sunday, August 5, 2007
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1 comment:
बहुत ख़ूब. हमारे समय का सच तो यही है.
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