Friday, January 1, 2010

रात की क़ैद में हैं उजाले

रात की क़ैद में हैं उजाले ।
बैठे हम हाथ पर हाथ डाले

लाश पहचान में आ सकी ना -
चील कौओं ने यूँ नोच डाले।

राज फैला है तब तब असत् का -
सत्य ने जब भी हथियार डाले ।

राह में आ गया जो भी पत्थर -
पाँव से हम उसे तोड़ डाले ।

रोएगी मौत पर मेरे दुनिया -
देखकर के मुझे मुस्करा ले ।

सब्र का बाँध जब टूटता है -
दिल संभलता नहीं है संभाले ।

गर्म बाज़ार हैं कुर्सियों के -
दाम इतने सदन ने उछाले।

वह अदालत में सच कैसे बोले-
होंठ पर खौफ के हैं जो ताले ।

- विनय ओझा 'स्नेहिल'

2 comments:

महेन्द्र मिश्र said...

नया वर्ष मंगलमय हो...बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ

Udan Tashtari said...

नये साल के पहले दिन ऐसे तेवर!! सही है!



वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाने का संकल्प लें और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

- यही हिंदी चिट्ठाजगत और हिन्दी की सच्ची सेवा है।-

नववर्ष की बहुत बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ!

समीर लाल