ख़यालों में तूं आ गया सोते सोते ।
तो दिल में सुकूँ आ गया रोते रोते।
मेरे जख्म ए दिल की नज़ाकत न पूंछो-
निगाहों से खूं आ गया रोते रोते॥
-विनय ओझा स्नेहिल
Friday, September 14, 2007
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मित्रों प्रस्तुत है मेरी कुछ कविताएं और कुछ व्यंग्य जो मेरे मन की सहज अभिव्यक्ति हैं, जो मुझे जीवन के उन क्षणों में अनुभूत हुई हैं, जब मन का निर्झर स्वतः रस की धारा से आप्लावित होने लगता है तब उसी को मैनें शब्दों में बाँधने की कोशिश की है। इसमें मैने कितनी सफलता पाई है इसका निर्णय आप स्वयं करें ।
2 comments:
वाह वाह!! बहुत खूब!
bahut khuub
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