हर एक शख्स बेज़ुबान यहाँ मिलता है ।
सभी के क़त्ल का बयान कहाँ मिलता है॥
यह और बात है उड़ सकते हैं सभी पंछी -
फिर भी हर एक को आसमान कहाँ मिलता है॥
सात दिन हो गए पर नींद ही नहीं आयी -
दिल को दंगों में इत्मीनान कहाँ मिलता है॥
न जाने कितनी रोज़ चील कौवे खाते हैं -
हर एक लाश को शमशान कहाँ मिलता है॥
-विनय ओझा स्नेहिल
Friday, August 24, 2007
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1 comment:
must say touching n very realistic lines snehil ji...bahut dino baad kuch sateek mila padhne ko..thx
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