यहाँ मन्दिर के दहलीजों पे भी जामा- तलाशी है-
जाने किस थैले में दहशतगरों का रक्खा बम निकले ।
-विनय ओझा 'स्नेहिल'
Tuesday, June 24, 2008
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मित्रों प्रस्तुत है मेरी कुछ कविताएं और कुछ व्यंग्य जो मेरे मन की सहज अभिव्यक्ति हैं, जो मुझे जीवन के उन क्षणों में अनुभूत हुई हैं, जब मन का निर्झर स्वतः रस की धारा से आप्लावित होने लगता है तब उसी को मैनें शब्दों में बाँधने की कोशिश की है। इसमें मैने कितनी सफलता पाई है इसका निर्णय आप स्वयं करें ।
1 comment:
acche sher me bilkul sahi baat. do laino mei satik bat kahane ke liye badhai.
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