सिर्फ चाहे से पूरी कोई भी ख्वाहिश नहीं होती।
जैसे तपते मरुस्थल के कहे बारिश नहीं होती॥
हमारे हौसलों की जड़ें यूँ मज़बूत न होतीं -
मेरे ऊपर जो तूफानों की नवाज़िश नहीं होती॥
हमे मालूम है फिर भी संजोकर दिल मे रखते हैं-
जहाँ मे पूरी हर एक दिल की फरमाइश नहीं होती॥
कामयाबी का सेहरा आज उनके सिर नहीं बंधता -
पास जिनके कोई उंची सी सिफारिश नहीं होती॥
हज़ारों आँसुवों के वो समंदर लाँघ डाले हैं-
दूर तक तैरने की जिनमे गुंजाइश नहीं होती॥
खुदा जब नापता है तो वो फीता दिल पे रखता है-
उससे इन्सान की जेबों से पैमाइश नहीं होती॥
-विनय ओझा स्नेहिल
Thursday, August 16, 2007
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4 comments:
खुदा जब नापता है तो वो फीता दिल पे रखता है
उससे इन्सान की जेबों से पैमाइश नहीं होती॥
चकबंदी वाली पैमाइश की बात तो नहीं कर राहे हैं न?
कामयाबी का सेहरा आज उनके सिर नहीं बंधता -
पास जिनके कोई उंची सी सिफारिश नहीं होती॥
--बहुत खूब, विनय भाई. दाद कबूलें.
बेहतर है छोड़ दो हमे तुम अपने हाल पर।
पैसे तो न खाओ मेरे हक़ के सवाल पर॥
जो हाथ चुने हमने खुद अपनी मदद को -
बन कर तमाचा बरसते हैं मेरे गाल पर ॥
खुल कर जवाब दीजिए अब मेरी बात का -
नज़रें चुराइए ना हमारे सवाल पर ॥
EXCELLENT VINAY, EXCELLENT
bahut khuub.....
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