सूरज हो मुकाबिल तो शरारा नहीं टिकता ।
दिन में कोई आकाश में तारा नहीं दिखता ॥
मुश्किल में बदल जाते हैं हर नाते और रिश्ते-
रोने को भी काँधे का सहारा नहीं दिखता ।
ईमान की कीमत न चुका पाओगे मेरे-
वरना सर-ए-बाज़ार यहाँ क्या नहीं बिकता ।
सरकारें बदल बदल के यह देख लिया है-
हालात बदल पाने का चारा नहीं दिखता ।
संसद पे जमा रक्खा है बगुलों ने यूँ कब्ज़ा-
हंसो का सियासत मे गुज़ारा नहीं दिखता ।
Saturday, January 22, 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
बहुत खूब मित्र
सुन्दर अभिव्यक्ति
सादर
शानदार अभिव्यक्ति महोदय👍
Post a Comment