ठोकरें राहों में मेरी कम नहीं।
भी देखो आँख मेरी नम नहीं।
जख्म वो क्या जख्म जिसका हो इलाज-
जख्म वो जिसका कोई मरहम नहीं।
भाप बन उड़ जाऊंगा तू ये न सोच-
मैं तो शोला हूँ कोई शबनम नहीं।
गम से क्यों कर है परीशाँ इस क़दर -
कौन सा दिल है कि जिसमें ग़म नहीं।
चंद लम्हों में सँवर जाए जो दुनिया -
ये तेरी जुल्फों का पेंचो-ख़म नहीं।
दाद के काबिल है स्नेहिल की गज़ल-
कौन सा मिसरा है जिसमें दम नहीं।
-विनय ओझा ' स्नेहिल'
Thursday, November 22, 2007
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1 comment:
bhut aachi rachana.badhai ho.
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