चावल जामत नाहिं है, जामत केवल धान ।
छिल्का उतरा काम का, अक्षत होवे ज्ञान ।।
दृष्टि आप की सृष्टि है, जिस पर मन की छाप ।
घनी अँधेरी रात में, रस्सी दीखै साँप ।।
मित्रों प्रस्तुत है मेरी कुछ कविताएं और कुछ व्यंग्य जो मेरे मन की सहज अभिव्यक्ति हैं, जो मुझे जीवन के उन क्षणों में अनुभूत हुई हैं, जब मन का निर्झर स्वतः रस की धारा से आप्लावित होने लगता है तब उसी को मैनें शब्दों में बाँधने की कोशिश की है। इसमें मैने कितनी सफलता पाई है इसका निर्णय आप स्वयं करें ।