Friday, January 1, 2010

रात की क़ैद में हैं उजाले

रात की क़ैद में हैं उजाले ।
बैठे हम हाथ पर हाथ डाले

लाश पहचान में आ सकी ना -
चील कौओं ने यूँ नोच डाले।

राज फैला है तब तब असत् का -
सत्य ने जब भी हथियार डाले ।

राह में आ गया जो भी पत्थर -
पाँव से हम उसे तोड़ डाले ।

रोएगी मौत पर मेरे दुनिया -
देखकर के मुझे मुस्करा ले ।

सब्र का बाँध जब टूटता है -
दिल संभलता नहीं है संभाले ।

गर्म बाज़ार हैं कुर्सियों के -
दाम इतने सदन ने उछाले।

वह अदालत में सच कैसे बोले-
होंठ पर खौफ के हैं जो ताले ।

- विनय ओझा 'स्नेहिल'