रात की क़ैद में हैं उजाले ।
बैठे हम हाथ पर हाथ डाले
लाश पहचान में आ सकी ना -
चील कौओं ने यूँ नोच डाले।
राज फैला है तब तब असत् का -
सत्य ने जब भी हथियार डाले ।
राह में आ गया जो भी पत्थर -
पाँव से हम उसे तोड़ डाले ।
रोएगी मौत पर मेरे दुनिया -
देखकर के मुझे मुस्करा ले ।
सब्र का बाँध जब टूटता है -
दिल संभलता नहीं है संभाले ।
गर्म बाज़ार हैं कुर्सियों के -
दाम इतने सदन ने उछाले।
वह अदालत में सच कैसे बोले-
होंठ पर खौफ के हैं जो ताले ।
- विनय ओझा 'स्नेहिल'
Friday, January 1, 2010
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