Friday, June 26, 2009

सब कुछ राम भरोसे-

सब कुछ राम भरोसे-
इस देश की स्थिति को देख कर किसी ने सच ही कहा था कि भगवान अगर कहीं है तो वह भारत में ही हो सकता है. क्यों कि जहाँ लोकतंत्र के तीनों स्तम्भों को भ्रष्टाचार के दीमक चाल चुके हों वह फिर भी खड़ा हो, इससे बड़ा आश्चर्य और क्या हो सकता है?य़हाँ सब कुछ राम भरोसे ही तो चल रहा है. यहाँ बच्चे बच्चे के ज़बान पर बाबा तुलसी दास की चौपाई –“होइहैं सोइ जो राम रचि राखा. को करि तरक बढ़ावहिं शाखा “ रटी- रटाई मिल जाएगी. अब देखिए न भा. ज. पा. पहली बार केन्द्र में राम भरोसे ही सरकार बनाने मे कामयाब रही . उत्तर प्रदेश में भा ज पा ने कई बार राम भरोसे ही सरकार बना कर शासन किया.

आडवानी जी राम भरोसे ही प्रधान मंत्री बनना चाहते थे.लेकिन भगवान राम को यह मंजूर नहीं हुआ, यह और ही बात है. चुनाव के सारे मुद्दों को ताख पर रख कर भा ज पा जाने कब ‘जय श्री राम’ का नारा लगाने लग जाती है पता ही नहीं चलता.
खैर छोड़िए भी, “अज़गर करे न चाकरी पंछी करै न काम . दास मलूका कह गए सबके दाता राम “ यह दोहा भा. ज.. पा का प्रेरणा स्तम्भ लगता है. उसे नहीं पता एक बार राम भरोसे सरकार बना लेने के बाद बार बार राम को सीढ़ी बना कर लाल किले पर नहीं चढ़ा जा सकता है . इस समय जब हार की समीक्षा की जा रही है तब पूरा दल दो भागों में बँटा है . एक यह कहता है कि राम एक शाश्वत सीढ़ी हैं जो दल को बार बार लाल किले पर चढ़ा सकते हैं तो दूसरा यह कहता है कि यह सीढ़ी घुन गयी है, जो पिछ्ले चुनाव में टूट चुकी है.यह देख कर मुझे तो यह डर लगता है कि कहीं भा ज पा का अंत समय न आ गया हो, क्योंकि अंत समय में ही राम का नाम मुख पर आता है कहीं राम का नाम लेते लेते इस दल का ही राम राम सत्य न हो जाए. कुछ लोग
तर्क देते हैं कि निर्बल के बल राम . क्योंकि भा ज पा आज निर्बल हो गई है, इस लिए उसे राम के बल की जरुरत है. राम का ही बल है जो हनुमान को समन्दर की छलाँग लगवा सकता है. अगर अगले आम चुनाव रूपी समन्दर की छलाँग लगानी है तो पार्टी को राम का नाम पतवार की तरह थामे रहना पड़ेगा.

यह वह देश है जहाँ वसूली कर ऊपर के अधिकारियों तक हिस्सा पहुँचाने वाली और दोनाली बन्दूक लिए ए के सैतालीस से लैस आतंकी को पकणने की हिम्मत रखने वाली पुलिस की जाँच- राम भरोसे, आसानी से पलट जाने वाले और झूठी गवाही देने वाले गवाहों की बुनियाद पर फैसला देने वाले और भारी संख़्या में सालों साल चलने वाले मुकद्मों के बोझ से दबे न्यायालयों में न्याय- राम भरोसे ,सरकार को दिया गया राजनीतिक दल द्वारा बाहर से समर्थन- राम भरोसे, देश की सुरक्षा- राम भरोसे, करोड़ों का कारोबार कर रहे बैंक की सुरक्षा -राम भरोसे, लोक तंत्र के ह्रिदय पर आतंकी हमला करने वाले फाँसी की सज़ा से दोष सिद्ध अपराधी की फाँसी - राम भरोसे, सम्विधान को हाथ में लेकर भय और पक्षपात के बिना जनता की सेवा करने की झूठी कसम खाने वाले नेताओं और मंत्रियों का चरित्र – राम भरोसे,
भा ज पा की पूरी राजनीति- राम भरोसे, क्रांति के पुरोधाओं को पैदा करने वाले सरकारी विद्यालयों और विश्व विद्यालयों का भविष्य -राम भरोसे, आम आदमी को स्वास्थ्य की गारंटी देने वाले सरकारी अस्पतालों की दशा -राम भरोसे, भारत का लोक तंत्र - राम भरोसे सब कुछ राम भरोसे ही तो चल रहा है. आज इतना ही, नहीं तो मुझ पर भी साम्प्रदायिक होने का आरोप लग जाएगा.अच्छा राम राम.

Sunday, June 21, 2009

शिक्षा की छीछालेदर और निजी दुकानेंi

शिक्षा की छीछालेदर और निजी दुकानें


कल टाइम्स आफ इंडिया में दो समाचार एक साथ छपे। एक यह कि टाइम्स नाउ ने केन्द्रीय मंत्री के निजी मेडिकल कालेज को कैपिटेशन फीस अवैध रुप से उगाही करते स्टिंग ऑपरेशन के तहत पकड़ा और दूसरा यह कि निजी डीम्ड युनिवेर्सिटीज में लगभग51 % छात्र प्रति वर्ष प्रवेश ले रहे हैं और सरकारी विश्व विद्यालयों का स्तर गिरता जा रहा है .सरकारी शिक्षड़ संस्थानों का लगातार गिरता स्तर राजनीतिग्यों के मुनाफाखोरी के लिए निजी शिक्षड़ संस्थाएं खोलने के प्रति बढ़ते आकर्षड़ के कारड़ है. ऐसा इस लिए है कि आज सरकारी विद्यालयों में जान बूझ कर शिक्षा की जो दुर्गति की जा रही है उसकी और कोई वजह नहीं बल्कि राजनीतिग्यों की साठ गांठ से चल रही शिक्षा की निजी दुकानें हैं जो मनमाने ढंग से पैसे की उगाही करते हैं. पहली चीज कि शिक्षा के लिए खोले गए सरकारी स्कूल आज अपर्याप्त पड़ रहे हैं और ज्यादा सरकारी स्कूल यह कह कर नहीं खोले जा रहे हैं कि आज कल लोग वहां अपने बच्चे भेजना नहीं चाह्ते हैं. अरे भाई क्या लोग पागल हो गए हैं कि ज्यादा पैसा देकर पढ़ाने का शौक चढ़ा है. दूसरी चीज कि आज यक्ष प्रश्न यह है कि क्या सरकारी स्कूल असाध्य रोग की तरह लाइलाज हो गए हैं और उनका प्रशाषन सुधारना असम्भव हो गया है.क्या सरकारी विद्यालयों के स्तर को सुधारना सरकार की जिम्मेदारी नहीं है ? वह अपनी जिम्मेदारी की टोपी बार बार क्यों दूसरों के सिर पर रख कर चैन से बैठ जाती है. इसकी कोई और वजह नहीं बल्कि निजी विद्यालयों के जरिए धन उगाही के प्रति ध्रितराष्ट्रीय मोह ही है. आज प्रश्न यह है कि सरकारी विद्यालयों में शिक्षा की छीछालेदर क्यों की जा रही है? उत्तर साफ है कि निजी विद्यालयों में बच्चों को भेजना जब तक मजबूरी नहीं बनाई जाएगी तब तक निजी विद्यालयों की दूकानें चलानी सम्भव नहीं हैं. ऐसा केवल एक ही कार्य के माध्यम से किया जा सकता है वह यह कि सरकारी विद्यालय आपर्याप्त संख्या में हों और उनमें भी सुशिक्षा की कोई आशा न रह जाए.
लार्ड मैकाले ने पूरे भारतवासियों को शिक्षा से वंचित रख्नने का जो फार्मूला निकाला वह अंग्रेजी माध्यम था. इससे उनके विकास की दर को सुस्त रखा जा सकता था और साथ ही उन्हें अपने रंग में रंगने में आसानी हो गई साथ ही भारतीयों में कुंठा की भावना भरनी भी आसान हो गई. तभी से बुद्धि के विकास की जगह तोतारटंत पढ़ाई का प्रचलन हो गया.मैं पूंछता हूं कि आज बाबा तुलसीदास, क़ालिदास, टैगोर, विवेकानन्द, राहुल सांक्रित्यायन जी ने किस कोंवेंट स्कूल से पढ़ाई की थी? जाहिर सी बात है कि आजादी के बाद सबसे बड़ी भूल जो हुई उसे मैं न माफ करने वाली गलती कहूंगा वह यह कि शिक्षा का राष्ट्रीयकरड़ न किया जाना और मात्रिभाषा में प्राथमिक शिक्षा का न दिया जाना.मैं इसे भूल इस लिए नहीं मानता क्योंकि जो सरकार में बैठ कर फैसले लेते रहे उनके बच्चों कोतो अव्वल दर्जे की शिक्षा मिलती रही और आम आदमी को वही घटिया दर्जे की शिक्षा लेने को बाध्य होना पड़ा. इसके बदले दोपहर का भोजन,आरक्षड़, वजीफा, आदि आदि क्या क्या दिया जाता रहा किंतु वह शिक्षा आम आदमी तक नहीं पहुंची जो राजनीतिग्यों के बच्चों और आभिजात्य वर्ग के बच्चों को मिलती रही. आज शिक्षा संस्थानों से लेकर सरकारी नौकरियों तक में आरक्षड़ का इंतजाम है किंतु इस बात की व्यवस्था नहीं है कि किसी गरीब आदमी का ब्च्चा मेडिकल,इंजीनियरिंग,मैनेजमेंट आदि की उच्च शिक्षा प्राप्त कर ले. क्योंकि उसकी फीस भर पाना उसके बूते की बात नहीं, तब वह अपने आरक्षड़ का क्या करे ? इस प्र्श्न का उत्तर आरक्षड़ की वकालत करने वाले देना नहीं चाह्ते.
अभी चुनाव के पहले प्रधान मंत्री जी ने यह घोषड़ा की थी कि विश्व स्तर की आठ यूनिवर्सिटीज खोलने की योजना बना रहे हैं. लेकिन हमारे सामने यक्ष प्रश्न यह है कि जिस तरह से विश्वविद्यालयों का प्रशाषन चलाने के लिए योग्यता को ताख पर रख कर वाइस चांसलरों की नियुक्तियां की जाती हैं और प्रोफेसरों की नियुक्तियां भी की जाती हैं क्या उस तरीके से हम ऐसी संस्थाएं कायम रख सकेंगे?आज सरकारी शिक्षड़ संस्थाओं की जो दुर्गति अपने धन उगाही के लिए सरकार में बैठे लोग कर रहे हैं उससे ज्यादा आशा करना दिवा स्वप्न देखने जैसा ही है.

क़ुल मिलाकर हम यह कह सकते हैं कि आज सरकार इस मनोदशा में नहीं दिख रही है कि इस समाज के महापरिवर्तन के उपकरड़ शिक्षा तंत्र को चुस्त दुरुस्त कर गरीब से लेकर अमीर तक एक समान शिक्षा मुहैया कराए जिसमे बिना किसी वर्ग भेद के प्राथमिक से उच्च शिक्षा तक सबके लिए शिक्षा का दरवाजा खुल जाए. इसी तरह सरकारें चलती रहेगी,सरकारी शिक्षा की सरकार द्वारा छीछालेदर भी चलती रहेगी क्योंकि निजी स्कूलों की दुकानें अबाध रूप से चलानी है .

Saturday, June 20, 2009

'पड़ गया खतरे में'

आतंकी हमलों से हिन्दुस्तान पड़ गया खतरे में .
देश का बच्चा बच्चा हर इंसान पड़ गया खतरे में ..

चला मुकद्मा सालों तक और दोष सिद्धि तक जा पहुंचा –
पर अफज़ल की फांसी का फरमान पड़ गया खतरे में..

बेशर्मी का आज एक पर्याय बन गयी है खादी -
वीर सुभाश और बिस्मिल का बलिदान पड़ गया खतरे में..

आज लुटेरों और पुलिस में साठ- ग़ांठ कुछ ऐसी है -
आज देश का हर कोई धनवान पड़ गया खतरे में..

पहले तो वह आदेर्शों की खूब दुहाई देता था-
जब रिश्वत की रकम बढ़ी ईमान पड़ गया खतरे में..

बैंक लुटेरा ए के सैंतालिस ज़ब लेकरके पहुंचा -
दोनाली बन्दूक लिए दरवान पड़ गया खतरे में ..

राम नाम को लेकर इतनी राजनीति चमकाई कि -
रामलला मे स्थापित भगवान पड़ गया खतरे में..

नमक बढा आई चुपके से ननद सास की साज़िश में -
बहू विनिर्मित स्वाद भरा पकवान पड़ गया खतरे में॥

Tuesday, June 16, 2009

'कोई तो होगा'

इतनी बड़ी है दुनिया तो मुझ जैसा कोई तो होगा ।
मैं जितना प्यासा हूं उतना प्यासा कोई तो होगा।।

जाने कितने ऐसे हैं जो ज़ाम ज़हर का पीते हैं-
जो मेरे आँसू पी जाए ऐसा कोई तो होगा ॥

देख के तुमको दिल मे मेरे एक कशिश सी उठती है-
तेरे दिल का मेरे दिल से रिश्ता कोई तो होगा ।।

-विनय कुमार ओझा 'स्नेहिल'