Friday, March 27, 2009

लोकतंत्र के कहांर ही कहर बने.

लोकतंत्र के कहाँर ही कहर बने।

देश और समाज के लिए ज़हर बने ॥

आतंक के आरोप में जो दोषसिद्ध हैं-

वो ही समाजवाद के हैं पक्षधर बने ॥

सबको पता है आती है हर साल यहाँ बाढ़ -

किस हाल में नदी के तटों पर हैं घर बने॥

कीचड उछालते हैं वो औरों पे इस लिए -

वे सिर्फ़ चाहते हैं की उन पर ख़बर बने॥

बैठा के सबको खे सकेंगे नाव कहाँ तक-

पग पग पे सियासत के सैकड़ों भंवर बने॥

इन्सान भटक जाए सचाई के राह से -

केवल इसी लिए ही वासना के ज्वर बने ॥