Friday, August 24, 2007

हर एक शख्स बेज़ुबान .....

हर एक शख्स बेज़ुबान यहाँ मिलता है ।
सभी के क़त्ल का बयान कहाँ मिलता है॥

यह और बात है उड़ सकते हैं सभी पंछी -
फिर भी हर एक को आसमान कहाँ मिलता है॥

सात दिन हो गए पर नींद ही नहीं आयी -
दिल को दंगों में इत्मीनान कहाँ मिलता है॥

न जाने कितनी रोज़ चील कौवे खाते हैं -
हर एक लाश को शमशान कहाँ मिलता है॥
-विनय ओझा स्नेहिल

Thursday, August 16, 2007

सिर्फ चाहे से....

सिर्फ चाहे से पूरी कोई भी ख्वाहिश नहीं होती।
जैसे तपते मरुस्थल के कहे बारिश नहीं होती॥

हमारे हौसलों की जड़ें यूँ मज़बूत न होतीं -
मेरे ऊपर जो तूफानों की नवाज़िश नहीं होती॥

हमे मालूम है फिर भी संजोकर दिल मे रखते हैं-
जहाँ मे पूरी हर एक दिल की फरमाइश नहीं होती॥

कामयाबी का सेहरा आज उनके सिर नहीं बंधता -
पास जिनके कोई उंची सी सिफारिश नहीं होती॥

हज़ारों आँसुवों के वो समंदर लाँघ डाले हैं-
दूर तक तैरने की जिनमे गुंजाइश नहीं होती॥

खुदा जब नापता है तो वो फीता दिल पे रखता है-
उससे इन्सान की जेबों से पैमाइश नहीं होती॥

-विनय ओझा स्नेहिल

Sunday, August 5, 2007

फिर क्या कहना ?

लोकतंत्र में अपराधी को माल्यार्पण फिर क्या कहना ?
जेल से आकर जनसेवा का शपथग्रहण फिर क्या कहना ?

जिनके हाथ मे ख़ून के धब्बे चौरासी के दंगो के-
बापू की प्रतिमा का उनसे अनावरण फिर क्या कहना ?

एक विधेयक लाभों के पद पर बैठाने की खातिर।
लाभरहित सूची मे उसका नामकरण फिर क्या कहना ?

कितने फांसी पर झूले थे जिस आज़ादी की खातिर -
सिर्फ दाबती खादी ही के आज चरण फिर क्या कहना ?

बार बार मैं दिखलाता हूँ अपने हाथों मे लेकर -
नहीं देखते अपना चेहरा ले दर्पण फिर क्या कहना ?

-विनय ओझा स्नेहिल