Monday, May 28, 2007

कैसे मानूं

उन्हें चेतना का संवाहक कैसे मानूं?
खल नायक को जननायक कैसे मानूं?
जो चप्पल तक बरसाते हैं सदनों में,
जन गण मन का अधिनायक कैसे मानूं?
जिन्हें बनाते डरता हूँ अभिभावक बच्चों का ,
उन्हें देश का अभिभावक कैसे मानूं?
जिन्हें बनाना नहीं चाहता द्वारपाल अपने घर का,
उन्हें राज्यपाल पद लायक कैसे मानूं?
विनय स्नेहिल

Monday, May 7, 2007

चतुष्पदियाँ

हम मुश्किलों से लड़ कर मुकद्दर बनाएँगे.
गिरती हैं जहाँ बिजलियाँ वहाँ घर बनाएँगे.
पत्थर हमारी राह के बदलेंगे रेत में -

हम पाँव से इतनी उन्हें ठोकर लगाएँगे..
-विनय ओझा स्नेहिल

**********************************************

उम्मीद की किरण लिए अंधियारे में भी चल.
बिस्तर पे लेट कर ना यूँ करवटें बदल.

सूरज से रौशनी की भीख चांद सा न मांग,
जुगनू की तरह जगमगा दिए की तरह जल ..
-विनय ओझा स्नेहिल